मैं छोटी थी उस समय ,उमर तो याद नही पर शायद नौ या आठ बरस की रही होंगी। मेरे घर की छत से लगी छत थी उनकी,उनके घर के अमरूद मेरी छत पर झांकते थे और मेरे घर के गुलमोहर उनकी बालकनी पर….. रोजाना शाम में मैं उनकी बातें सुनने कभी उनकी कहानियां सुनने छत पर चली जाती थी,असल में उन्हे सुनना नही देखना मेरा मकसद होता था,वो थी ही इतनी खूबसूरत,,पूरे मोहल्ले की क्लियोपेट्रा!! ताज़गी भरा गुलाबों सा चेहरा,होंठ ऐसे थे जैसे भगवान ने उन्हें पर्मानेंट लिपस्टिक लगा कर भेजा हो , लाख कोई ढूंढना चाहे उनके चेहरे पे कोई एब ना ढूँढ पाये ऐसा नूरानी चेहरा था,और वैसी ही चटकीलि बातें।। नाम था नितेश!! रज्जू दा अक्सर मुझे नितेश दीदी के लिये कुछ रंग बिरंगे परचे दिया करते थे,जिन्हे एक छोटी सी एक्लेयर के बदले मैं सात तालों में छिपाकर दीदी तक पहुंचा दिया करती थी वो मोहल्ले के जुलियस सीज़र थे, इन्जीनियरिन्ग द्वितीय वर्ष के घनघोर जुझारू विद्यार्थी,मैं उन्हें अक्सर ड्राफ्ट और स्केल दबाये शाम को कॉलेज से हारा थका लुटा पिटा घर लौटते देख कर सोचा करती कि ये महापुरुष आगे चल कर कोई ना कोई इतिहास ज़रूर लिख जायेगा इतिहास का तो पता नही पर उन्होने चिट्ठियां बहुत लिखी,गुलाबी लिफाफे मे गम से चिपका कर अच्छी तरह सील पैक कर के ही मुझे देते थे और जब मैं डाकिए का सीरियस रोल अदा कर चिट्ठी को माफिक जगह पहुंचा आती तब एक एक्लेयर पकड़ा देते….. …..पहले पहले मिलने वाली एक्लेयर बाद मे दस रुपये की डेरी मिल्क में बदली और डाकिए के पद से मेरे त्यागपत्र देने के ठीक पहले मुझे रोस्टेड एल्मंड मिलने लगी थी।। समय के साथ ये प्रेम कहानी भी अपने अंजाम को पहुंच गयी ,डीग्री के बाद रज्जू दा एम टेक करने बाहर चले गये…… विरह मे विरहणी भी कितना रास्ता तकती ,बी ए,एम ए सब हो चुका था,घर वालों ने रिश्ता ढूँढ़ा,फेरे हुए और नितेश दी हम सब को छोड़ कर आस्ट्रेलिया उड़ गयी।।। * अब ससुराल नौकरी सब से फुरसत ही नही होती की मायके में रुक पाऊँ,पर इत्तेफ़ाक़ से वैलेन्टाइन वीक पर ही घर पर भी कुछ आयोजन में आना और रुकना हुआ ।।। शाम को मोहल्ले के गणपति मन्दिर में आरती के लिये गयी,वहाँ से लौट ही रही थी कि रज्जू दा के घर की ओर नज़र चली गयी,एक चौदह पन्द्रह साल का लड़का बालकनी मे खड़ा मेरी छत की तरफ देख रहा था,मैने ध्यान से उसकी निगाहों पे गौर किया ,उसकी आंखे मेरी छत से लगी दुसरी छत पर टिकी थी जहां नितेश दीदी की बिटिया अपने नाना की छत पर टहल रही थी…. ध्यान आ गया की माँ ने सुबह ही बताया था नितेश दीदी के भाई के बेटे का मुंडन संस्कार होना है जिसमें वो भी सपरिवार आई हुई हैं।। चेहरे पर अनायास ही मुस्कान चली आयी,सच कहा है किसी ने “इतिहास खुद को दोहराता है”।aparna…
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