‘उधेड़बुन ‘
आज सुबह से ही धानी बड़ी व्यस्त है, कभी सलाईयों में फंदे डाल रही है,कभी निकाल रही है,कल ही से उसने नयी नयी बुनाई सीखना शुरू किया है॥
अहा! कितना मजे का समय है ये,,बुनाई कितनी कलात्मक होती है,,और भी कलायें होतीं हैं संसार में ,पेटिंग करना,कढ़ाई करना,पॅाट बनाना,वास बनाना पर ये सब एक हद तक सिर्फ अपने शौक पूरे करने जैसा है।बुनाई ही एक ऐसी कला दिखती है जिसमें कलाकार अपने सारे प्रेम को निचोड़ कर रख देता है।
कुछ फंदे सीधे कुछ उल्टे बीनना ,कहीं फंदा गिराना कही फंदा उठाना,उफ पूरा गणित है बुनाई भी॥ और इतनी त्याग तपस्या के बाद बुना स्वेटर जब हमारा करीबी कोई पहनता है तो कितना गर्व होता है बनाने वाले को खुद पर। ऐसे ही बहुत सारे मिले जुले भावों के साथ धानी ने भी अपना पहला स्वेटर बुनना शुरू किया था,,पिंटू दा के लिये।
स्वेटर बुनते हुये कितनी प्रसन्न कितनी विभोर थी धानी,अपने उपर अचानक मान भी होने लगता कि कोई भी नया काम हो वो कितनी जल्दी सीख लेती है।खाना बनाने में तो उसे महारथ हासिल है,कैसी भी पेचीदगी भरी जटिल रसोई हो,वो आधे घण्टे में सब सुलझा के रख देती है,चने की भाजी बनाना हो या मटर का निमोना उसके बायें हाथ का खेल है बस । कचौडि़याँ और मूंग का हलवा तो घर पे वही बस बनाती है,,मां को रसोई मे इतनी देर खड़ा होने मे थकान होने लगती है। घर को सजा संवार केे रखना कपड़़ोंं को सहेजना,रसोई बनााना इन सारे नारी सुलभ गुणोंं की खान है धानी।
बस एक ही चीज है जो उसे बिल्कुल नही सुहाती ,वो है पढ़ाई। जाने कैसे लोग किताबों में प्राण दिये रहतें हैं,ना उसे पढ़ना पसंद है ना लिखना,,नापंसदगी की हद इतनी है कि लड़की गृहशोभा,गृहलक्ष्मी जैसी गृहिणियों की पहली पसंद रही किताबों पर भी आंख नही देती।
आलम ये है कि दो बार में ही सही धानी ने बारहवीं पास कर ली ,उसके बाद होम साईंस लेकर अभी कालेज का सेकण्ड इयर पढ़ रही है,वो भी दुबारा। पढ़ाई से इतनी वितृष्णा का कारण भी बहुत वाजिब है,धानी की अम्मा ने अपने जमाने में बी.ए. किया था ,उसके बाद उनकी शादी हो गयी।मन में तरह तरह के सपने सजाये धानी की मां ससुराल आई तो उन्हे पता चला कि उस घर में उनकी डिग्री की कोई कीमत नही। वो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहतीं थीं,एक अच्छी सरकारी नौकरी करना चाहतीं थीं पर उनकी पढ़ाई उनका ज्ञान उनके चौके तक ही सिमट कर रह गया। इसी कारण उन्होंने बचपन से ही धानी के मन में ये बात भली प्रकार बैठा दी जैसे तैसे वो थोड़ा बहुत पढ़ लिख ले फिर उसकी अच्छे घर में शादी करनी हैं।
बालिका धानी के मन में ये बात अच्छे से पैठ गयी की उसे सारा ज्ञान ऐसा ही अर्जित करना है,जिससे उसकी एक अच्छे घर में शादी हो सके। उसी ज्ञान का नया सोपान था बुनाई।
बहुत खुश और खुद मे मगन थी धानी बुनाई सीखते हुये।पड़ोस में रहने वाली लाली दीदी मायके आई थीं दो महीनों की लम्बी छुट्टी पर,बस उन्ही से ये गुरू ज्ञान मिला था,वो अपने पति के लिये बुन रही थी और धानी अपने पिंटू दा के लिये।
पिंटू दा ! पिंटू दा से धानी की मुलाकात यही कोई 7-8 साल पहले हुई थी, तब वो स्कूल जाती थी,शायद नौंवी या दसवीं में थी,। पिंटू दा ने उसी साल ईंजिनियरिंग काॅलेज में प्रवेश किया था,दोनो सेमेस्टर पास करने के बाद की छुट्टियों में अपनी मामी के घर आ गये थे घूमने।
पहली मुलाकात में ही उसे पिंटू दा बहुत भा गये थे,,कितने लंबे थे, चौड़ा माथा ,घने बाल,गोरा रंग,और गहरी आवाज ॥ कोई भी बात कितना समझा के बोलते थे,कि सामने वाला उनकी हर बात मान जाये।
उस दिन मां ने धानी के हाथ से साबुदाने के बड़े भिजवाये थे रीमा चाची के घर,,बड़े लेकर जब धानी वहांं पहुंची तब चाची चाय चढा़ रहीं थीं,उसे देखते ही खिल गयीं ” आ तू भी चाय पी ले।”
“नही चाची मैं तो बस ये देने आयी हूं,मां ने रज्जू दा के लिये भेजा है।”
“अरे दिखा जरा क्या भेजा है जिज्जी ने,वाह साबुदाने के बङे।”
” अच्छा रूक जरा मैं ये चाय भी साथ ही छान देतीं हूं,तू जरा ऊपर रज्जू के कमरे तक पहुचां दे ।” “ये चाय के दो कप क्यों चाची,मैं तो नही पियूंगीं।” “हां बिटिया ये दूसरा कप पिंटू के लिये है,कलकत्ता वाली ननंद का बेटा।” “बहुत होशियार लड़का है,पहली बार में ही वो क्या कहते हैं आई.आई.टी. निकाल लिया उसने,,कानपुर में पढ़ रहा अभी।”
“अच्छा मैं चाय दे के आती हूं।”
धानी का आज अपनी सहेली ममता के साथ पिक्चर जाने का प्लान था,ममता सज धज के उसके घर पहुंच चुकी थी,वो दोनो निकलने ही वाली थीं कि माता जी का फरमान सुनाई दिया ,
” बिट्टो जा जरा जाते जाते ये बड़े रीमा के यहां दे जा।”
“क्या मां तुम भी ना,बनाने का इतना शौक है तो पहुंचाया भी खुद करो ,मुझे वैसे ही देर हो गयी है।”
“अरे जा ना धनिया दे आ,पांच मिनट लगेगा मुश्किल से” भुनभुनाती पैर पटकती धानी वहां गयी तो रीमा चाची ने एक नया काम पकड़ा दिया। ऊपर पहुंच कर कमरे के दरवाजे को खटकाने जा ही रही थी कि दरवाजा खुल गया, पर सामने रज्जू दा तो नही थे,ये तो कोई और था। तब तक सामने खड़े आगंतुक ने हाथ बढ़ाकर धानी के हाथ से ट्रे ले ली ,और वापस अंदर मुड़ गया।अच्छा तो यही था पिंटू,,चाची का आई आई टियन भांजा।
धानी वापस मुड़ कर जाने लगी तो पीछे से एक थैंक्यू सुनाई दिया,मुड़ कर मुस्कुरा कर वो जल्दी जल्दी नीचे उतर गयी।
यही थी वो मुलाकात जिसके बाद धानी का मन “मैनें प्यार किया “देखने मे भी नही लगा,कितने मन से आयी थी ,और यहां सारा वक्त उसी के बारे मे सोचते गुजर गया।
इसके दो तीन दिन बाद धानी दोपहर मैं स्कूल से वापस आयी तो रज्जू दा और पिंटू उसके घर पे बैठे खाना खा रहे थे,वो रसोई में गयी तो मां ने बताया कि रीमा चाची की तबीयत कुछ नासाज है इसी से मां ने दोनों को यही बुला लिया खाने पे।
उसके बाद तो सिलसिला सा चल निकला ,जाने क्यो धानी को पिन्टू दा को छुप छुप के देखना बड़ा भाता था।अपनी छत पे बने लोहे के दरवाजे के ऊपर बनी जाली से वो बीच बीच मे झांक लगा लेती की बाजू वाली छत पे पिन्टू दा आ गये या नही।
और जैसे ही देखती की आ गये वो झट किसी ना किसी बहाने छत पे आ जाती।
कभी पहले से पानी मे तर पौधों मे पानी डालती ,कभी सुखे कपड़े पलटने लगती।
और इन्ही सब के बीच कभी रज्जू दा उसे कैसे छेड़ देते ,कितना गुस्सा आता था उसे।
“अरी धानी कभी पढ़ लिख भी लिया कर,बस इधर उधर डोलती फिरती है।”इस साल भी फेल होना है क्या।”
पिन्टू के सामने कट के रह गयी धानी।रज्जू दा भी कभी कैसा बचपना कर जाते हैं ।
पर पिन्टू उससे हमेशा बहुत प्यार से बात करता ,धानी जी बोलता ,,आप आप कर के उसे किसी राजकुमारी सा अह्सास कराता ।
अक्सर शाम को उनकी ताश की बाजी जमती।रीमा चाची ,रज्जू दा,वो और पिन्टू।
उसकी और रज्जू दा की जोडी हमेशा ही जीत जाती और वो बड़ी अदा से पिन्टू को देख मुस्कुरा देती।
एक बार चाची के साथ पकौड़ी तल रही थी,तभी कोई किताब पढते पढ़ते पिन्टू रसोई मे आया,उसे लगा मामी खड़ी है,उसने चट प्लेट से एक पकौड़ा उठाया और मुहँ मे भर लिया।
गरम पकौड़े की जलन से तिलमिला गया की तभी धानी पानी भरा ग्लास ले आयी।
पिन्टू की जान मे जान आयी “थैंक यू धानी जी! मेरा ध्यान ही नही गया ,पढ़ने मे लगा था ना।”और हँसते हुए पिन्टू वहाँ से चल दिया।
पर इस खाने पीने के चक्कर मे अपनी किताब भूल गया।
धानी उसे उठा ले गयी।”मिल्स ऐण्ड बून” !
हे भगवान ! ये प्यार जो ना कराये,,धानी के लिये एक किताब पढ्ना उतना ही दुष्कर था जितना एक लंगडे के लिये रेस मे भागना और एक गून्गे के लिये गीत गाना।
पर फिर भी बिचारी डिक्शनरी खोल के पढ़ने बैठी।उसकी बुद्धि जितना समझ सकती थी उतना उसने भरसक प्रयत्न किया फिर किताब को पकड़े ही सो गयी।
कुछ दिन बाद होली थी।इस बार धानी ने अपनी जन्म दायिनी की भी उतनी सहायता नही की जितनी रीमा चाची के घर लोयियाँ बेली,उनके हर काम मे कदम ताल मिलाती धानी यही मनाती की चाची किसी तरह पिन्टू के लिये उसे उसकी माँ से मांग ले।
होली का दिन आया ,हर होली पे पूरे मोहल्ले को रंगती फिरती धानी इस बार नव वधु सी लजिली बन गयी।उसे एक ही धुन थी।
पिन्टू रज्जू के साथ उनके घर आया ,उसके माँ बाबा के पैर छुए आशीर्वाद लिया,उसके गालों पे भी गुलाबी रंग लगाया और चला गया।
बस धानी ने सब जान लिया,उसने प्रेम की बोली अपने प्रियतम की आँखो मे पढ़ ली।
सारे रस भरे दिन चूक गये,और एक दिन पिन्टू कानपुर लौट गया।
धानी चाची के घर आयी तब चाची ने बताया “अरे धानी ,बेटा एक कप चाय तो पिला दे।”आज सुबह से जो रसोई मे भीड़ि तो अभी फुर्सत पायी है,आज पिन्टू निकल गया ना,उसीके लिये रास्ते का खाना बनाने मे लगी रही।”
” कब निकले पिन्टू दा,कुछ बताया नही उन्होनें ।क्या अचानक ही जाना हुआ क्या उनका।”
अपनी आवाज की नमी को छिपाते हुए उसने पुछा।
“रिसेर्वेशन तो पहले ही से था ना लाड़ो,इतनी दूर कही बिना रिसर्वेशन जाया जा सकता है क्या।”
हाँ जाया तो नही जा सकता पर बताया तो जा सकता है,इतनी भी ज़रूरत नही समझी,की मुझे बता के जायें।
ठीक है कभी हमने एक दूसरे से नही कहा लेकिन क्या हम दोनो ने एक दूसरे की आंखो मे प्यार देखा नही।
एक 14वर्ष की किशोरी दुख के अथाह सागर मे डूबने उतराने लगी।उसका पहला प्यार उससे बहुत दूर चला गया था,पर उसे अपने प्यार पे विश्वास था,एक दिन उसका प्यार अपने पैरों पे खड़ा होके उसके घर बारात लिये आयेगा और उसे चंदन डोली बैठा के ले जायेगा।
पिन्टू धानी के हृदय की कोमलता से सर्वथा अनभिज्ञ था,वो छुट्टियां मनाकर वापस लौट अपनी पढाई मे व्यस्त हो गया।
समय बीतता गया,जीवन आगे बढता गया,पर धानी के मन से पिन्टू नही निकल पाया।
धानी ने बहुत सुन्दर स्वेटर बुना है,जाने कब मिलना होगा पिन्टू से,पर जब भी होगा तभी वो अपनी प्रेम भेंट उसे देगी।ऐसा सोच कर ही धानी गुलाबी हो जाती।
रज्जू के दादा 89बरस के होके चल बसे,पूरा घर परिवार शोकाकुल है,धानी भी,पर बस एक खयाल उसे थोड़ा उत्फुल्ल कर रहा की अब तो पिन्टू आयेगा।
पिन्टू आया,पूरे 8बरस बाद! धानी का पहला प्यार वापस आ गया।
रीमा चाची के घर पूजा पाठ संपन्न हो रहा,तेरह बाम्हण जिमाने बैठे है,धानी दौड दौड कर सारे कार्य कर रही जैसे उसके खुद के ससुराल का काम है।अभी तक पिन्टू की झलक नही मिली पर उसी इन्तजार का तो मज़ा है।
सारे काम निपटा के चाची बोली “जा धानी पिन्टू उपर रज्जू के कमरे मे है,जा ये थाली वहाँ दे आ।”
थाली लिये राजकुमारी चली।मन ऐसे कांप रहा की अभी गिर पड़ेगी ।थाली ऐसी भारी लग रही की कही हाथ से छूट ना जाये,घबड़ाहट से हथेलियों मे पसीना छलक आया है,दिल की धड़कन तो धानी खुद सुन पा रही है।
उफ्फ कैसा होगा वो समय ! जब वो पिन्टू को देखेगी ,उसे स्कूल मे पढी एक कविता की लाइन याद आ रही।
‘”चित्रा ने अर्जुन को पाया,शिव से मिली भवानी थी”।
प्रेम का अपना अनूठा ही राग होता है वीर रस की कविता मे भी शृंगार रस की एक ही लाइन याद रही लड़की को।
धडकते हृदय और कांपते हाथों से द्वार पे दस्तक दी उसने।
“दरवाजा खुला है”वही भारी आवाज,सुनते ही धानी का हृदय धक से रह गया।धीरे से किवाड़ धकेल उसने खोला।
अन्दर कुर्सी पे बैठा पिन्टू कुछ पढ़ रहा है,हाँ पिन्टू ही तो हैं।पिन्टू ने आँख उठा कर धानी को देखा, धानी ने पिन्टू को, नजरे मिली,पिन्टू मुस्कुराया, पूछा
“कैसी है धानी ?” धानी के गले मे ही सारे शब्द फंस गये ,लगा कुछ अटक रहा है।
“ठीक हूं पिन्टू दा।आप कैसे हो ?” इतना कह कर थाली नीचे रख धानी वापस सीढिय़ां उतर गयी।
“मै तो एकदम मस्त ।”पिन्टू की आवाज सीढियों तक उसका पीछा करती आयी।
हां मस्त तो दिख ही रहे,हे भगवान !कोई आदमी इतना कैसे बदल गया वो भी 8 ही वर्षों मे।
नही! हे मेरे देवता! कोई मुझे आके बोल दो ,ये पिन्टू नही है।
धानी को ज़ोर की रुलायी फूटने लगी,वो वहाँ से भागी ,अपने कमरे मे जाके ही सांस ली।
अपनी आलमारी मे अपने कपडों के बीच छिपा के रखा स्वेटर निकाला और उसे अपने सीने से लगाये रोती रही।
कितना मोटा आदमी सा हो गया था पिन्टू,पेट तो ऐसे निकल आया था जैसे कोई आसन्न पृसुता है जिसे अभी तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा।उफ्फ सर के घने बाल भी गायब,ये तो बिल्कुल ही गंजा हो गया।
पूरा चेहरा फूल के कुप्पा हो गया है,इतने लाल से गाल ,गालों का इतना उभरा मांस की बड़ी बड़ी आंखे भी चीनियों सी छोटी दिख रही। पूरी शकल ही बदल गयी जनाब की बस नही बदली आवाज।
तो क्या आवाज के भरोसे ही शादी कर लुंगी।।
” हे भगवान ! बचा लिया मुझे,अच्छा हुआ अपनी बेवकूफी किसी से कही नही मैने।”
“अपने प्रथम प्रेम को अपने ही मन तक सीमित रखा।”
बेचारी धानी जब रो धो के फुरसत पा गयी तब अपने बुने स्वेटर को लेके बैठी,अब उसे उधाड़ना जो था ,ये स्वेटर अब उसका प्रेमी कभी नही पहन पायेगा।।
उधेड़बुन एक छोटी सी प्यारी सी प्रेम कथा है ,जो किशोर वय के प्रेम को दर्शाती है,जिसमे नायिका को हमेशा ही लगता है, उसका प्रेम बहुत उंचे आदर्शों पे टिका है,जबकी वास्तव मे उसके प्रेम का आधार सिर्फ रूप ही है,और जीवन की वास्तविकता से दो चार होते ही धानी का गुलाबी प्रेम विलोपित हो जाता है।।।
कहानी को पढ़ने के लिये धन्यवाद!
अपर्णा।
Bahut mazedaar lagi dhaani ke prem kahani
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Bechari dhaniya😂😂😂
Too good aparna ji
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Bahut hi khoobsurat . aapki kahaniya padhte waqt aisa lagta hai jaise Rishikesh Mukharji ji ki koi film chak rahi ho aankhon ke samne
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Kuch bhi… Aap ko humour bhi romance me hi nikalna tha…
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प्यारी सी ,भोली सी धानी की मासूम सी प्रेम कहानी …प्रेम में सपने तो देखे बुने साथ ही साथ कुछ और भी बुन डाला 😅😅….चलो पिंटू दा ना सही सईंया जी ही पहन लेगे। वैसे मां लोगों की बात समझ नहीं आती , अच्छे भले नाम का सत्यानाश कर दिया ,धानी से धनिया 😂😂👌
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सच्चाई को समर्पित
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Last para 👌, aajkal isi ko prem kehte h.
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Mere to हंस हंस k पेट दर्द हो रहा रहा है बिचारी धानी
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Mere b😂😂😂😂
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