हरिवंशराय बच्चन
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
एहसासों से रंगों को चुराकर
लफ़्ज़ों के मोतियाँ पिरोकर
गुनती हूँ कुछ किस्सों को यूँ
बिना क्लिक तस्वीर बनाकर
शहद सी मीठी कोई कहानी
कहीं दर्द की बहती रवानी
बूंद बूंद में ढकीं मूंदी सी
पोटली बादलों का पानी।
गंगा के पानी सी पावन
कभी लगे रिमझिम मनभावन
आप सभी की समीक्षाएँ भी
ऊसर में जैसे हो सावन ।।
कुछ शब्दों के जाल बुने
कुछ उल्टे सीधे फाल चुने
कटा सफर अब तक कुछ यूं
भर भर सपनों के ढाल गुने।
कविता तो जितना लिखती जाऊंगी उतनी ही आगे बढ़ती जाएगी, इसलिए कम शब्दों में अब तक का लेखन सफर बेहद शानदार रहा। बेशक बहुत सारे अचीवमेंट्स हैं मेरे खाते में, जैसे लंबी कहानियाँ लिख पाना, मेरे अंदर छिपी बैठी लेखिका को पा लेना लेकिन इस सब के बावजूद मेरा अब तक का सबसे बड़ा अचीवमेंट हैं आप मेरे पाठक !!
आपसे सबसे जुड़ा ये रिश्ता यूँ ही साल दर साल मज़बूत होता रहे…
क्योंकि आप हैं तो हम हैं…
नए साल की आप सबको शुभकामनाएं!
हमर छत्तीसगढ़ के वासी मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई..
😂😂😂😂
खुशियां आंखें गीली कर जातीं हैं जब कोई ऐसा मौका आये कि किसी ज़मीन से जुड़े शख्स को सिंहासन पर बैठे देखती हूँ……
मेरी नज़रों में ही असल नायक होता है। फल बेचकर 150 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले हरिकेला को संतरे को orange कहा जाता है ये मालूम न था। अंग्रेज़ी की ये छोटी सी भाषयी अज्ञानता ने उनके ज्ञान चक्षु खोल दिए। स्वयं की अशिक्षा को मानक मान कर उन्होंने अपनी जीवन भर की कमाई से अपने गांव के बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया।
मेंगलुरु के हरिकेला के एक छोटे से प्रयास ने सफलता रची और आज सरकारी अनुदान और कई प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन के सहयोग से उनका हजब्बा स्कूल सफलता के सोपान छू रहा है।
स्नेह सम्मान से लोग इन्हें अक्षर संत भी कहतें हैं। आपके हाथों में पद्मश्री अवार्ड भी मुस्कुरा रहा है।
आप सभी को रूप चौदस की हार्दिक शुभकामनाएं
तैले लक्ष्मीर्जले गङ्गा दीपावल्याश्चतुर दशीम्
प्रातःस्नानं तु यः कुर्याद्यमलोकं न पश्यति।।
दीपावल्याः चतुर्दशीं तैले लक्ष्मी जले गङ्गा भवति यः
प्रातःस्नानं कुर्यात् यमलोकं न पश्यति |
भाव: मैल, अपवित्रता, गन्दगी दरिद्रता के सूचक है अतः लक्ष्मी
पूजन से पहले इन दरिद्रता के निशानों को मिटा लेने हेतु
चतुर्दशी को प्रातः काल में तेल-उबटन और फिर स्नान कर मैल,
अपवित्रता और गन्दगी को हटाने से यमलोक (नरक) के कभी
दर्शन नहीं होते अर्थात इस लोक में तो सुख से जीते ही हैं बाद
में भी सद्कर्मों के कारण नरक गमन नहीं होता |
रूपचौदस की शुभकामनाएं
चिकित्सा के देवता भगवान धनवंतरी आप सभी पर अपनी कृपा बनाएं रखें, और धन की देवी लक्ष्मी आपके घरों पर स्थायी आवास बना लें।
आप सभी को महापर्व दीपावली के प्रथम दिवस धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं…💐
लोग कहतें हैं , झूठ मत बोलो।
पर रिश्ते निभाने वाले जानते हैं कि कुछ मीठे झूठ रिश्तों को बनाये रखने के लिये कितने ज़रूरी हैं…..
पुरुष के मन मस्तिष्क
शब्द हृदय
हर जगह छाई हो।
ओ स्त्री!!!
तुम कहाँ से आई हो?
वो कहता है
मैंने तुझे पंख दिए।
परवाज़ दिए
उड़ लो, जितना मैं चाहूं
ओ स्त्री !!!
क्या तुम उसकी मोहताज हो?
उसका घरौंदा बनाया
तिनका तिनका सजाया
पर जब वक्त आया तुम्हारा
उसने तुम्हें
अपने पैरों पे गिराया
ओ स्त्री!!!
तुम कैसे उसकी सरताज हो?
वो बेबाक है बिंदास है
जो जी में आये
करने को आज़ाद है
कूबत तो तुम्हारी भी है
फिर
ओ स्त्री!!!
तुम क्यों हर मर्तबा
झुकने को तैयार हो?
कभी ये ना पहनो
का अधिकार
कभी ऐसे न बोलो
का अहंकार
पर हर दफा उसकी
सुन कर चुप
रह जाने वाली
ओ स्त्री!!!
तुम खुद में एक अंगार हो
क्यों जानती नही,
तुम खुद को मानती नही
वो ‘मैं’ में अड़ा रहता है,
क्यों पहचानती नही?
तुम खुद को घोल घोल
ज़िन्दगी को पी गयी
ओ स्त्री !!!
तुम स्वयं एक संसार हो…
To be continued …..
आप सब चाहें तो मेरी इस रचना को अपने शब्दों से सजा कर आगे बढ़ा सकतें हैं…. ” ओ स्त्री!!”
बिंदास लिखिए
बेबाक लिखिए..
क्योंकि..
कलम को जितना चला लो ये शिकायत नही करती…
aparna…
आंसूओं को छिपाने के लिए
जबरन मुस्कुराती लड़कियाँ….
दिल के दर्द को, बस यूं ही
हंसी में उड़ाती लड़कियाँ…
दिन भर खट कर पिस कर
तुम करती क्या हो सुन कर भी
चुप रह जाने वाली लड़कियां
बाप की खुशी के लिए
अपना प्यार ठुकराती लड़कियां….
भाई की सम्पन्नता के लिए
जायदाद से मुहँ मोड़ जाती लड़कियां….
पति के सम्मान के लिए
अपना घर द्वार खुशी छोड़ जाती लड़कियां….
बच्चों को बढ़ाने के लिए
ऊंची नौकरी को लात मार जाती लड़कियां…
डूबते से संसार की
अजूबी सी ये लड़कियां
जाने कब किस जगह इनकी मुस्काने
छिन जाएंगी…
उन बेपरवाह हंसी के गुब्बारों से
खुद को सजाती ये लड़कियां….
इन लड़कियों का जहान कुछ अलग सा होता है
इतनी आसानी से कैसे समझ पाओगे इन्हें
की क्या होती हैं ये लड़कियां!!!
aparna …
मैं,मैं हूँ! जब तक तुम,तुम हो !
तुमसे सारे रंग रंगीले
तुमसे सारे साज सजीले,
नैनों की सब धूप छाँव तुम,
होठों की मुस्कान तुम ही हो।
मैं,मैं हूँ! जब तक तुम,तुम हो !
तुमसे प्रीत के सारे मौसम
तुमसे सूत,तुम ही से रेशम
तुमसे लाली,तुमसे कंगन,
मन उपवन के राग तुम ही हो
मैं,मैं हूँ! जब तक तुम,तुम हो !
जीवन का यह सार तुम्हारा,
मेरा सब संसार तुम्हारा,
गुण अवगुण मेरे सब जानो,
मुझमे बसे मेरे प्राण तुम ही हो।
मैं,मैं हूँ! जब तक तुम,तुम हो !।।
महादेवी वर्मा
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार
मैं बन जाऊंगी फिर मरहम
वक्त के ज़ख्मों पर तेरे और
मुझे देख हौले हौले से
फिर तुम थोडा शरमाओगे।
जब तुम बूढे हो जाओगे।।
सुबह सवेरे ऐनक ढूंड
कानों पे मै खुद ही दूंगी ,
अखबारों से झांक लगा के
तुम धीरे से मुस्काओगे।
जब तुम बूढे हो जाओगे ।।
दवा का डिब्बा तुमसे पहले
मै तुम तक पहुँचा जाऊंगी,
मुझे देख फिर तुम खुद पे
पहले से ही इतरा जाओगे।
जब तुम बूढे हो जाओगे।।
सुनो नही बदलेगा कुछ भी
हम भी नही और प्रीत नही
हम तुम संग चलेंगे ऐसे
की तुम फिर लहरा जाओगे
जब तुम बुढे हो जाओगे।।
मैं तो ऐसी थी,ऐसी हूँ ,
ऐसी ही मैं रह जाऊँगी,
मेरे मन के बचपने से
तुम भी संग इठला जाओगे
जब तुम बूढ़े हो जाओगे।।
मुझसी मिली है तुमको जग मे,
सोच के खुश हो रहना तुम,
फिर अपनी किस्मत पे खुद ही
धीरे धीरे इतराओगे
जब तुम बूढ़े हो जाओगे।।
aparna …….
मैं खुशबू से भरी हवा हूँ
मै बहता जिद्दी झरना हूँ
कठिन आंच मे तप के बना जो
मै ऐसा सुन्दर गहना हूँ ।।
छोटा दिखता आसमान भी,
मेरे हौसलों की उड़ान पे,
रातें भी जो बुनना चाहे,
मैं ऐसा न्यारा सपना हूँ ।।
हरा गुलाबी नीला पीला
मुझसे हर एक रंग सजा है,
इन्द्रधनुष भी फीका लगता
प्रकृति की ऐसी रचना हूं ।।
मैं हूँ पत्नी ,मै हूँ प्रेयसी
मै हूँ बेटी, मै ही बहू भी,
तुझको जीवन देने वाली
मै ही माँ,मै ही बहना हूं ।।
मैं हूँ मीठी धूप सुहानी,
मैं ही भीगी सी बयार भी,
मुझमें डूब के सब कुछ पा ले,
मै ऐसा अमृत झरना हूं ।।।
अपर्णा ।
ओ स्त्री: कभी खुद को भी जिया करो……..
जल्द आ रही है, मेरे ब्लॉग पर !!
भीड़ से निकले तो सिग्नल ने पकड़ लिया,
ज़िन्दगी स्पीड ब्रेकर की नुमाइंदगी हो गयी….
नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है
सपने – जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है
तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।
जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उलटा रखता है
बची आँच पर हाथ सेकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता है
जन्मदिन मुबारक अमृता प्रीतम जी!!
मैं धूप सी निखरी तुझमे फिर
और शाम सी ही ढल जाऊंगी
तू मुझे बना ले बाँसूरी
कान्हा तेरे रंग, रंग जाऊंगी।।।
तेरी अंखियों से जग देख लिया
अब नही कहीं कुछ भाता है
तू एक कदम भी बढ़ा ले तो
तेरे पीछे पीछे आऊंगी।।
मैं जानू ये जग तेरा है
हर छल कपट पर मेरा है
तेरी तान मधुरतम मुझे लगे
तेरे स्वरों मे मैं लहराऊँगी।।
तेरे आंसू से मन भीग गया
तेरे सपनों में दिन बीत गया
बस मेरा नही तू सब का है
कैसे तुझे सबसे छिपाऊँगी।।
तू मुझे बना ले बाँसूरी,कान्हा तेरे रंग रंग जाऊंगी।।
aparna ….
हमें लिखने का शौक है, उन्हें पढ़ने का क्यों नही..
हमें रुकने की आरज़ू, उन्हें थमने का क्यों नही…
समुद्र मंथन का था समय जो आ पड़ा,
द्वंद दोनो लोक में विषामृत पे था छिड़ा..
अमृत सभी में बांट के
प्याला विष का तूने खुद पिया…..
मृत्युंजय
तू गर्व था,तू गान था,तू रश्मियों की खान था ।
सबल सकल प्रभात था,हे कर्ण तू महान था॥
अटल तेरी भुजायें थी ,अनल तेरा प्रवाह था ।
कनक समान त्वक मे भी,तू लौह का प्रताप था ।
तू सूतों का भी दर्प था,राजाओं में आकर्श था
प्रचण्ड भी अमोघ भी,तू खुद में एक आदर्श था।
तू मैत्री का उल्लास था ,तू प्रीत की सुवास था।
हरा जिसे ना पा सके ,वो शत्रुओं का त्रास था।
तू मोतियों के कुण्डलों में ,रूप का श्रृँगार था।
कवच तेरा वो स्वर्णजङित स्वयं ही एक अगांर था।
विराट तेरे तन मे ही वो प्रेमह्रदय मन भी था,
ना मारना भ्राताओं को,तूने किया ये प्रण भी था।
तू चण्ड था प्रचण्ड था,अजेय था अशेष था।
तुझे हराने इंद्र ने भी बदला अपना भेस था।
तू वारिधी की प्यास था,तू अग्नि की उजास था,
समीर की बयार तू, तू धरतियों की आस था ।
था मारना तुझे कठिन ये पाण्डवों को ज्ञात था।
तभी तो श्री कृष्ण ने रचा नया विन्यास था ।
बस एक असत्य तेरी जिदंगी का काल बन गया
वो श्राप परशुराम का दुखों का जाल बुन गया ।
भूल बैठा सारी विद्या और सारे ज्ञान को
पर नही भूला तू अपने वचन स्वाभिमान को ।
रथ का चक्का फंस गया जब काल के कपाल में ,
तीर अर्जुन के चले फिर देख अविरल ताल में ।
मृत्यु को जीत लिया ,मृत्युंजय तूने जब ,
यम स्वयं नत हुआ कर्ण तेरे सामने तब।
कृष्ण चाह थी तुझे ,त्यागा जो तूने प्राण था ,
ओ दानवीर पाण्डवों की, जीत तेरा दान था।।
aparna….