पानी पानी रे
सुबह सुबह खिड़की पर खड़ी थी कि एक गीत फ़िल्म माचिस का सुनाई पड़ा, और पानी पानी रे याद दिला गया।
गीत गुलज़ार साहब ने लिखा है और विशाल भारद्वाज के संगीत को लता जी ने इस कदर खूबसूरती से गाया है कि सुनते वक्त ये गीत आपको एक अलग ही रूहानी दुनिया में ले जाता है।
स्कूल में थे बहुत छोटे तब ये मूवी आयी थी और मैंने देखी भी थी लेकिन सच कहूं तो समझ में नही आई थी, बिल्कुल भी नही।
बहुत बाद में कभी आधी अधूरी सी देखी तो जो सार समझ आया वो ये की आज का हो या बीते समय का युवा हमेशा माचिस की तीली सा होता है जो एक चिंगारी से ही सुलग उठता है।
एक आम आदमी कृपाल के आतंकवादी बनने की कहानी है माचिस।
उसके गांव में किसी सासंद को मारने की असफल कोशिश कर भागे जिमी को ढूंढने आयी पुलिस को जसवंत सिंह( राज जुत्शी) का मज़ाक में अपने कुत्ते जिमी से मिलवाना इतना अखर जाता है कि वो उसे अपने साथ थाने ले जाते हैं और 15 दिन बाद मार पीट के वापस छोड़ देते हैं। उसकी हालत से दुखी और नाराज़ उसका दोस्त कृपाल जब किसी सरकारी महकमे से मदद नही पाता तब अपने चचेरे भाई जीत जो किसी आतंकवादी संगठन का हिस्सा है की तलाश में निकल जाता है और सनाथन ( ओम पुरी ) से टकरा जाता है, यहां से उसका सफर शुरू होता है। सनाथन उसे कमांडर से मिलवाता है जहाँ कृपाल की कहानी सुनने के बाद कमांडर उसे खुद अपना बदला लेने की सलाह देता है।
उस संगठन को परिवार मान कृपाल ट्रेनिंग लेने के बाद भरे बाज़ार में खुराना ( पुलिस वाले) पर गोली चला देता है।
अगली कार्ययोजना के लिए जिस मिसाइल लॉन्चर का इंतज़ार किया जा रहा होता है वो होती है वीरा( तब्बू)
वीरा कृपाल की मंगेतर और जसवंत की बहन होती है।
कृपाल से मिलने पर बताती है कि पुलिस वाले खुराना को कृपाल के द्वारा मारने के बाद पुलिस एक बार फिर जसवंत को पकड़ कर ले गयी और वहाँ पुलिस के टॉर्चर से तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। उसकी मौत की खबर नही सहन कर पाने से वीरा की माँ भी चल बसी , बार बार पुलिस के घर आने से परेशान वीरा भी कृपाल के रास्ते चल पड़ती है।
कृपाल और वीरा दो प्यार में डूबे दिलों के मिलन पर फिल्माया यह गीत बहुत खाली सा लगता है…
गीत की पंक्तियां ..
ये रुदाली जैसी रातें जगरातों में बिता देना
मेरी आँखों में जो बोले मीठे पाखी को उड़ा देना
बर्फों में लगे मौसम पिघले
मौसम हरे कर जा
नींदें खाली कर जा..
पानी से गुहार लगाती नायिका की मौसम हरे कर जा और नींदे खाली कर जा … सहज ही अपनी उदासी अकेलापन और अपने साथ हुए अत्याचारों की तरफ ध्यान ले जाती है।
कितना अकेलापन झेला होगा जब नायिका ने इन पंक्तियों को गाया होगा…..
एक गांव आएगा, मेरा घर आएगा…
जा मेरे घर जा, नींदे खाली कर जा…
इसके बाद नायक नायिका चुपके से शादी करने का फैसला कर लेते हैं।
बहुत सारी घटनाएं घटती चली जातीं है…. नायक को कमांडर की तरफ से सासंद को मारने का काम दिया जाता है।
उसके कुछ पहले ही वीरा कृपाल के पास से उसकी सायनाइड चुरा कर रख लेती है।
( यही वो सीन था जहाँ से मुझे सायनाइड का महत्व पता चला था कि उसे निगल कर मौत को गले लगाया जा सकता है)
कृपाल का प्लान फेल हो जाता है और वो पुलिस के द्वारा पकड़ लिया जाता है।
यहाँ फिर बहुत कुछ होता घटता जाता है। वीरा के हाथ से सनातन मारा जाता है।
वो बड़ी मुश्किल से कृपाल से मिलने पहुंचती है और सबसे छिपा कर उसके हाथ में उसका सायनाइड रख कर वहाँ से बाहर निकल कर अपना सायनाइड भी खा लेती है।
कहानी बहुत ही ज्यादा ब्लैक थी। दुख अवसाद त्रासदी आंसूओं से भरी हुई लेकिन एक गहरी छाप छोड़ जाती है।
जैसा कि मैं कोई समीक्षक तो हूँ नही इसलिए टेक्निकल कुछ नही कह सकती लेकिन गुलज़ार साहब की लिखी कहानी सीधे दिलों में उतर जाती है।
सारे किरदार अपना पार्ट बखूबी निभाते हैं।।
जिम्मी शेरगिल की शायद पहली ही फ़िल्म थी , और वो अपनी छाप छोड़ने में सफल भी रहे।
तब्बू तो बेस्ट हैं ही।
पूरी फिल्म में मुझे सबसे ज्यादा पसंद आये फ़िल्म के गीत!
चप्पा चप्पा चरखा चले हो या
छोड़ आये हम वो गलियां या फिर
पानी पानी रे।
लेकिन सबसे खूबसूरत गीत था…
तुम गए सब गया
कोई अपनी ही मिट्टी तले
दब गया…
गुलज़ार साहब के शब्दों का जादू सभी उनके चाहने वालों के सर चढ़ कर बोलता है।
अगली समीक्षा या चीर फाड़ अपने किसी पसंदीदा गीत की करने की कोशिश रहेगी।
तब तक सुनते रहिए…
पानी पानी इन पहाड़ो के ढलानों से उतर जाना
धुंआ धुंआ कुछ वादियां भी आएंगी गुज़र जाना।
एक गांव आएगा, मेरा घर आएगा..
जा मेरे घर जा, नींदे खाली कर जा..
पानी पानी रे, खारे पानी रे…
aparna….